सोमवार, 18 अप्रैल 2016

what we do for success?


प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि वह जीवन में उच्च स्थान प्राप्त करे| लोग सफलता के स्वप्न देखते हैं अधिकांश लोग जीवन के बाहरी क्षेत्र में नाम, बड़ाई, प्रतिष्ठा, श्री, समृद्धि उच्च पद आदि के लिये प्रत्यनशील रहते हैं लेकिन बहुत कम लोग ही सफल हो पाते हैं| एक रेखा को बिना मिटाये छोटी कैसे किया जा सकता है?
रेखा के पास दूसरी बड़ी रेखा खींचकर उस रेखा को बिना मिटाये छोटा किया जा सकता है| ठीक ऐसे ही दूसरों को मिटाकर, उनको नुकसान पहुंचाकर, उनकी बुराई करके बड़े बनने का जो लोग स्वप्न देखते हैं वो निश्चित ही असफल होते हैं| यदि ऐसे व्यक्तियों को प्रारम्भिक दौर में कुछ सफलता मिल भी जाये तो अंत में उन्हें असफल होना ही पड़ेगा क्योंकि सफलता का नियम धनात्मक है|
जब लोग दूसरों की गर्दन काटकर स्वयं पनपने की कोशिश करते हैं, दूसरों के बढते हुए पैरों को खींचकर उनको गिराकर आगे बढने के स्वप्न देखते हैं, दूसरों का खून चूसकर अपना घर बसाना चाहते हैं, दूसरों का सुख छीन कर खुद सुखी होना चाहते हैं तो वहां इंसानियत का नहीं शैतानियत का नियम लागू हो जाता है जिसके परिणाम अंतत: प्रतिकूल दुःखप्रद ही मिलेंगे| इस अमानवीयता के बर्बर नियम के फलस्वरूप धरती पर पतन, असफलता,विनाश की कब्रें पद-पद पर बनी हुई हैं | और किसी भी क्षण मनुष्य अपने उम्मीद के साथ उनमें सदा के लिये सो जायेगा| दूसरों को उजाड़ने के प्रयत्न में मनुष्य स्वयं ही उजड़ जाता है, जब-जब उक्त उन्माद से पागल मनुष्य ने जन जीवन पर कहर ढाए तो वह स्वयं ही बर्बाद हो गया | रावण, कंस, दुर्योधन, हिटलर, जैसे शक्ति सम्पन्न कुशल नीतिज्ञ चतुर व्यक्तियों को भी हमेशा के लिये नष्ट हो जाना पड़ा|
किसी भी वृक्ष को उगने के लिये प्रकृति ने मिट्टी, जल, वायु, प्रकाश आदि की पर्याप्त व्यवस्था सृष्टि में कर रखी है| साथ ही विभिन्न बीजों में उनके गुण प्रतिष्ठित कर दिए हैं, जो पौधों की निश्चित अवस्था में चलकर प्रकट होते ही हैं| इसके अनुसार बोया गया बबूल का बीज कुछ समय बाद कांटेदार बड़ा वृक्ष बनेगा, आम का बीज बोने पर विशाल वृक्ष ठंडी छाया और मधुर फलों का रूप मिलेगा| यही बात संसार के अन्य क्षेत्रों में भी लागू होती है | विश्व विधायक (परमात्मा) ने विभिन्न कर्म और उनके फल निश्चित कर दिए हैं जिससे बचना असम्भव है| बुराई का परिणाम बुरा होगा, पाप का अंत पाप में ही होता है| इर्ष्या-द्धेष दूसरों की हानि पहुंचा कर, दूसरों का अहित सोचने से अपने ही बुरे का शुभारम्भ हो जाता है| मन वचन कर्म से उद्भूत इस तरह कर विजातीय सूक्ष्म परमाणु जहाँ होंगे पहले वहीँ हमला करेंगे| यही कारण है कि दूसरों को हानि पहुँचाने वाले भय, आशंका, आक्रोश, अशांति, उद्धिग्नता एवं मानसिक उत्तेजना से ग्रस्त होकर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में असफल होने लगते हैं| वातावरण उनके विपरीत बन जाता है| उन्हें किसी की सद्-भावना का हार्दिक सहयोग नही मिलता| दबाव भय या चापलूसी के रूप में भले ही लोग उनका समर्थन करें किन्तु उनमें सच्चाई नहीं होती और इन सबके कारण जीवन के हर मोर्चे पर मनुष्य को असफलता का सामना करना पड़ता है |
यह एक आम शिकायत है कि “सच्चाई, न्याय, ईमानदारी के मार्ग पर चलकर लोगों को नुकसान उठाने पड़ते हैं| ऐसे लोग सदैव घाटे में रहते हैं असफल होते हैं| वहीँ दूसरे लोग जो बदमाशी, अन्याय, अनीति, बेईमानी का रास्ता अपनाते हैं वे सदैव फायदा उठाते हैं, लाभ में रहते हैं जीवन में सफल होते हैं|”
दूसरी बात यह है कि अच्छाई के मार्ग पर चलकर भी मनुष्य यदि अपने क्षेत्र में पर्याप्त श्रम, उद्दोग  नहीं करता तो उसकी सफलता सदैव अनिश्चित ही रहेगी, बल्कि असफलता ही मिलेगी| आम के गुण-धर्मों से प्रभावित होकर उनका बीज बो देने से ही आम का फल प्राप्त नहीं हो जाता अपितु बीज बो देने के बाद उसमें खाद-पानी और सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना पड़ता है और फिर लम्बे समय तक धैर्य की आवश्यकता होती है| क्यूंकि उपयोगी महत्वपूर्ण फल देर से ही मिलते हैं| इस बीच में भी आने वाले तूफान, आंधी, विघन बाग को उजाड़ देने वाले पशु-पक्षियों का आक्रमण भी फल प्राप्ति में कम खतरनाक नहीं होते| यदि कोई मनुष्य यह सब नहीं करे और आम खाने की आकांक्षा रखे तो उसकी आशा कभी पूरी नहीं होगी और इस असफलता का कारण आम बोना नहीं अपितु मनुष्य के प्रयत्न का अभाव माना जायेगा|
दूसरी ओर बबूल के पेड़ लगाने में, झाड़ियों की खेती करने में तो विशेष श्रम नहीं करना पड़ता, थोड़े ही समय में खेती लहरा उठेगी यह निश्चित है | न पानी देना और न ही ज्यादा मेहनत करना|
अविवेकी, अनजान लोग इस हरियाली को देखकर अपने अंकुरित हुए आम के बगीचे को छोड़ सकते हैं किन्तु वे यह नहीं जानते कि हरियाली के भविष्य में असंख्यों भयंकर काँटों का अस्तित्व छिपा है|

यदि अच्छे रास्ते पर चलकर बुद्धिमानी, कुशलता, लगन, और पूर्ण प्रयत्न से कार्य किया जाये तो परिणाम उसी तरह निश्चित है जैसे किबाड ( गेट) खोल देने पर प्रकाश का आगमन होता है|
सच्ची सफलता के लिये अच्छाई नैतिक आदर्शों से प्रेरित होकर सबके हित में अपना हित, सबकी भलाई और उन्नति हो, ऐसे कामों में लगा रहना आवश्यक है| ऐसे लोगों को बाहरी दृष्टि से होने वाली असफलता भी उनके प्रत्येक रचनात्मक प्रयत्न, प्रत्येक कदम पर सफलता ही है| दरअसल ऐसे मनुष्यों के शब्द कोष में तो असफलता नाम का शब्द ही नहीं होता है|

                                                                 -    पंडित श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक के कुछ अंश



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