रविवार, 15 मई 2016

why we are unhappy today?

आज हम अशांत क्यों हैं? आज मनुष्य सुख, शांति की खोज में भटक रहा है| भौतिक वस्तुयों के परिग्रह में भटकता हुआ मानव सुख के स्थान पर दुःख और शांति के स्थान पर अशांति के दावानल में निरंतर समाहित होता जा रहा है| आज का मानव भौतिक सुख को ही सुख मानकर उसी को प्राप्त करने में अपना सारा जीवन पैसे के पीछे भागने में लगा देता हैं तथा क्षण भर के लिए भी शांति के दर्शन नहीं करता है| हो न हो आज दिखावे का भी बहुत प्रचलन है सब कुछ होने के बाबजूद सिर्फ दिखावे मात्र के लिए भी आज के मानव की शांति भंग है चारों ओर बेचैनी, परेशानी और घबराहट का ही साम्राज्य है| मानसिक शांति नहीं है आज के मानव के पास| दिन रात खून-पसीना एक करके जायज और नाजायज तरीके से धन कमाते हैं खुले दिल से खर्च भी करते हैं आलीशान राजमहल जैसे सुन्दर घरों में निवास करते हैं फिर भी हृदय क्षुब्ध होता है फिर भी कहीं शांति नहीं मिलती हम शांति से बहुत दूर हैं| भाग-दौड़ और आपाधापी की जिन्दगी में अपनी सेहत को भी दाव पर लगा रहे हैं| हमारी अवस्था राजस्थान के मरुभूमि में भटकने वाले हिरन के जैसी है जो पानी की तलाश में अपने प्राण खो देता है|
हम लोग सोचते हैं कि धन में सुख-शांति है| हम अपनी शांति के लिए एक वस्तु को लाते हैं तो चार और नई वस्तु की लालसा हमारे मस्तिष्क में जन्म ले लेती हैं हमारी बढ़ी हुयी आवश्यकतायें ही हमारी वर्तमान अशांति का कारण हैं| मनुष्य की आवश्यकतायें और इच्छायें कभी ख़त्म नहीं होती हैं एक इच्छा और आवश्यकता की पूर्ति करते ही नई इच्छा और आवश्यकता जाग्रत हो जाती है तो ऐसे में शांति कहाँ और कैसे मिलेगी?
वास्तव में शांति हमें किसी की खुशामद से प्राप्त नहीं होती ये तो मनुष्य के भीतर उसकी आत्मा में निहित होती है बस जरुरत है उसी ख़ुशी और शांति को महसूस करने की| आत्मा के बाहर उसकी सत्ता नहीं है| जब हमारा अन्तःकरण अच्छे विचार योग प्राणायाम और साधना से सात्विक बनता है तब इन्द्रियां वश में हो जाती हैं और हम अपने आप में छिपी हुयी शांति की वास्तविक निधि को पहचान पाते हैं| वास्तव में शांति तो यही है कि जब मनुष्य का अपने आप पर नियन्त्रण है तो वह तृष्णा, संग्रह, मोह और लालच में नहीं बंधता तो उसे शांति की तलाश में कही भटकने की जरूरत नहीं है| इच्छायों और आवश्यकताओ का अंत ही शांति का द्वार है|  



         

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