पुरानी कहावत है "Rome was not built in a day",
पर अब नयी आ गयी है . 'But it collapsed in a week", ...
तो भैया कर ली तरक्की , जीत लिए देश , कर ली औध्योगिक क्रांति, कमा लिए पेट्रो डॉलर , बना लिए मॉल्टी नेशनल कारपोरेशन , कर लिया जिहाद , बन गए सुपर पावर या अब भी कुछ बाकि है ?
एक सूछ्म से परजीवी ने आपको घुटनो पर ला दिया ? न एटम बम काम आ रहे न पेट्रो रिफाइनारी ? आपका सारा विकास एक छोटे से जीवाणु से सामना नहीं कर पा रहा ?? क्या हुआ , निकल गयी हेकड़ी ?? बस इतना ही कमाया था इतने वर्षों में ? की एक छोटे से जीव ने घरो में कैद कर दिया ???
मध्य युग में पुरे यूरोप पे राज करने वाला रोम ( इटली ) नष्ट होने के कगार पे आ गया , मध्य पूर्व को अपने कदमो से रोदने वाला ओस्मानिया साम्राज्य ( ईरान , टर्की ) अब घुटनो पर हैं , जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था , उस ब्रिटिश साम्राज्य के वारिश बर्मिंघम पैलेस में कैद हैं , जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे , उस रूस के बॉर्डर सील हैं , जिनके एक इशारे पर दुनिया क नक़्शे बदल जाते हैं , जो पूरी दुनिया के अघोषित चौधरी हैं , उस अमेरिका में लॉक डाउन हैं और जो आने वाले समय में सबको निगल जाना चाहते थे , वो चीन , आज मुँह छिपता फिर रहा है और सबकी गालिया खा रहा है।
और ये सब आशा भरी नज़रो से देख रहे हैं हमारे ६८ वर्ष के नायक की तरफ , उस भारत की ओर जिसका सदियों अपमान करते रहे , रोंदते रहे , लूटते रहे ।
और ये सब किया हैं एक इतने छोटे से जीव जो ने दिखाई भी नहीं देता, मतलब ये की एक मामूली से जीव ने आपको आपकी औकात बता दी
। वैसे बता दूँ , ये कोरोना अंत नहीं, आरम्भ है , एक नए युद्ध का , एक ऐसा युद्ध जिसमे आपके हरने की सम्भावना पूरी है ।
जैसे जैसे ग्लोवल वार्मिंग बढ़ेगी , ग्लेशियरो की बर्फ पिघलेगी , और आज़ाद होंगे लाखो वर्षो से बर्फ की चादर में कैद दानवीय विषाणु , जिनका न आपको परिचय है और न लड़ने की कोई तयारी , ये कोरोना तो झांकी है , चेतावनी है , उस आने वाली विपदा की , जिसे आपने जन्म दिया है।
मेनचेस्टर की औध्योगिक क्रांति और हारवर्ड की इकोनॉमिक्स संसार को अंत के मुहाने पे ले आयी ।।
और जानते हैं, इस आपदा से लड़ने का तरीका कहाँ छुपा है ??
तक्षशिला के खंडहरो में , नालंदा की राख में , शारदा पीठ के अवशेषों में , मार्तण्डय के पत्थरो में ।।
सूछ्म एवं परजीवियों से मनुष्य का युद्ध नया नहीं है , ये तो सृष्टि के आरम्भ से अनवरत चल रहा है , और सदैव चलता रहेगा , इस से लड़ने के लिए के लिए हमने हर हथियार खोज भी लिया था , मगर आपके अहंकार, आपके लालच , स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने की हठ धर्मिता ने सब नष्ट कर दिया ।
क्या चाहिए था आपको???? स्वर्ण एवं रत्नो के भंडार ?
यूँ ही मांग लेते , राजा बलि के वंशज और कर्ण के अनुयायी आपको यूँ ही दान में दे देते ।
सांसारिक वैभव को त्यागकर आंतरिक शांति की खोज करने वाले समाज के लिए वे सब यूँ भी मूल्य हीन ही थे , ले जाते ।
मगर आपने ये क्या किया , विश्व वंधुत्वा की बात करने वाले समाज को नष्ट कर दिया ?
जिसका मन आया वही अश्वो पर सवार होकर चला आया , रोदने ,लूटने , मारने , जीव में शिव को देखने वाले समाज को नष्ट करने ।
कोई विश्व विजेता बनने के लिए तक्ष शिला को तोड़ कर चला गया, कोई सोने की चमक में अँधा होकर सोमनाथ लूट कर ले गया , तो कोई किसी आसमानी किताब को ऊँचा दिखाने के लिए नालंदा की किताबो को जला गया , किसी ने उम्मत को जिताने के लिए शारदा पीठ टुकड़े टुकड़े कर दिया , तो किसी ने अपने झंडे को ऊंचा दिखाने के लिए विश्व कल्याण का केंद्र बने गुरुकुल परंपरा को ही नष्ट कर दिया ।
और आज करुण निगाहों से देख रहे हैं उसी पराजित, अपमानित , पद दलित , भारत भूमि की ओर , जिसने अभी अभी अपने घावों को भरके अंगड़ाई लेना आरम्भ किया है ।
किन्तु , हम फिर भी निराश नहीं करेंगे , फिर से माँ भारती का आँचल आपको इस संकट की घडी में छाँव देगा , श्रीराम के वंशज इस दानव से भी लड़ लेंगे , ऋषि दधीचि के पुत्र अपने शरीर का अस्थि मज्जा देकर भी आपको बचाएंगे ।
किन्तु...
किन्तु, मार्ग उन्ही नष्ट हुए हवन कुंडो से निकलेगा , जिन्हे कभी आपने अपने पैरों की ठोकर से तोडा था ।
आपको उसी नीम और पीपल की छाँव में आना होगा , जिसके लिए आपने हमारा उपहास किया था ।
आपको उसी गाय की महिमा को स्वीकार करना होगा , जिसे आपने अपने स्वाद का कारण बना लिया ।
उन्ही मंदिरो में जाके घंटा नाद करना होगा , जिनको कभी आपने तोडा था
उन्ही वेदो को पढ़ना होगा ,, जिन्हे कभी अट्टहास करते हुए नष्ट किया था
उसी चन्दन तुलसी को मष्तक पर धारण करना होगा , जिसके लिए कभी हमारे मष्तक धड़ से अलग किये गए थे ।
ये प्रकृति का न्याय है और आपको स्वीकारना होगा।
फिर कहता हूँ , इस दुनिया को अगर जीना है , तो सोमनाथ में सर झुकाने आना ही होगा , तक्षशिला के खंडहरो से माफ़ी मांगनी ही होगी , नालंदा की ख़ाक छाननी ही होगी ।
सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामया ,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत् ...
|
Know Yourself
Light which guides you from darkness to Light from falsehood to truth from ignorance to Knowledge...
गुरुवार, 26 मार्च 2020
भारत की ओर देखता विश्व- कोरोना वायरस एक वैश्विक महामारी
शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019
6 अप्रैल 2019) को नया सृष्टि संवत 1960853120 (एक अरब छियानबे करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ बीस ) वर्ष व विक्रमीसंवत् 2076वाँ शुरू हो गया है।
जब किसी बच्चे से पूंछे कि आपको गिनती पहाड़े और अ आ इ ई. .. किसने सिखाए तो बच्चे तुरंत उत्तर देते हैं कि हमारे माता-पिता, दादा, दादी और गुरु ने। अब बच्चों से प्रश्न करो की आपके माता-पिता, दादा, दादी और गुरु ने यह ज्ञान कहाँ से प्राप्त किया तो आपको तुरन्त उत्तर मिलेगा कि उनके माता-पिता, दादा, दादी और गुरु से, और उनको कहाँ से मिला तब अंत में उत्तर मिलेगा कि परमात्मा से। अब यहाँ ये प्रश्न उठता है कि कौन सा ज्ञान दिया परमात्मा ने ?
यह वेद का ज्ञान था जिसे सृष्टि की आदि में परमेश्वर ने दिया था। सृष्टि की आदि का अर्थ है कि जब परमात्मा ने जीवों को बनाया था। ईश्वर ने युवा अवस्था में महिला और पुरुषों को बनाया था और अन्य प्रकार के सभी जीव-जन्तुओं व पेड़-पौधों इत्यादि को बनाया था।
परमात्मा ने आज से 1960853116 (१९६०८५३११६) वर्ष पूर्व वेदों का ज्ञान दिया था। सृष्टि की आदि में युवा अवस्था में महिला व पुरुष बनाये थे उनमें (4) ४ ऋषि सर्वश्रेष्ठ पवित्र आत्मा थे। इन चार ऋषियों के नाम अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा थे। अग्नि ऋषि को ऋग्वेद का ज्ञान, वायु ऋषि को यजुर्वेद का ज्ञान, अंगिरा ऋषि को सामवेद व आदित्य को अथर्वेद का ज्ञान परमात्मा ने दिया था।
वेदों में अनन्त ज्ञान का भंडार है। वेदों में जो विद्याएं हैं वे सूक्ष्म रूप में हैं। स्वामी कृष्णदेव तीर्थ भारती ने वेदों में से वेद गणित खोज निक|ला उन्होंने वैदिक गणित के सोलह सूत्र बनाए उन्हीं के आधार पर आज वही वैदिक गणित कई देशों में पढ़ाया जा रहा है।
वेदों के ज्ञान के बारे में हमारे ऋषि-मुनियों ने सृष्टि को चार युगों में बांटा है।
सतयुग, त्रेता, द्वापर, और कलियुग।
इनकी आयु इस प्रकार है।
सतयुग - 1728000 (१७२८०००) चारगुना
त्रेता - 1296000 (१२९६०००) तीनगुना
द्वापर - 864000 (८६४०००) दूना कलियुग से
कलियुग - 432000 (४३२०००)
चारों युगों को मिलाकर एक चतुर्युग = 4320000 (४३२००००) बनता है। सृष्टि की आयु चार अरब उन्तीस करोड़ चालीस लाख अस्सी हजार वर्ष है।
71 (७१) चतुर्युग बीत जाने पर 1 मन्वन्तर होता है ऐसे- ऐसे सृष्टि में 14 (१४) मन्वन्तर होते हैं।
1 मन्वन्तर= 4320000 ˣ 71=306720000 (तीस करोड़ सरसठ लाख बीस हजार) वर्ष हुए।
14 मन्वन्तर= 14 ˣ 306720000 = 429480000 (चार अरब उन्तीस करोड़ चालीस लाख अस्सी हजार) वर्ष सृष्टि की आयु है। सृष्टि से अब तक 6 मन्वन्तर=6 ˣ 306720000=1840320000 वर्ष बीत चुके हैं। 7 वाँ मन्वन्तर चल रहा है इसमें 28 वाँ कलियुग चल रहा है अर्थार्थ 27 बार सतयुग, त्रेता, द्वापर, और कलियुग बीत चुके हैं। = 432000 ˣ 27 = 11664000 एक करोड़ सोलह लाख चौसठ हजार वर्ष
यह वेद का ज्ञान था जिसे सृष्टि की आदि में परमेश्वर ने दिया था। सृष्टि की आदि का अर्थ है कि जब परमात्मा ने जीवों को बनाया था। ईश्वर ने युवा अवस्था में महिला और पुरुषों को बनाया था और अन्य प्रकार के सभी जीव-जन्तुओं व पेड़-पौधों इत्यादि को बनाया था।
परमात्मा ने आज से 1960853116 (१९६०८५३११६) वर्ष पूर्व वेदों का ज्ञान दिया था। सृष्टि की आदि में युवा अवस्था में महिला व पुरुष बनाये थे उनमें (4) ४ ऋषि सर्वश्रेष्ठ पवित्र आत्मा थे। इन चार ऋषियों के नाम अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा थे। अग्नि ऋषि को ऋग्वेद का ज्ञान, वायु ऋषि को यजुर्वेद का ज्ञान, अंगिरा ऋषि को सामवेद व आदित्य को अथर्वेद का ज्ञान परमात्मा ने दिया था।
वेदों में अनन्त ज्ञान का भंडार है। वेदों में जो विद्याएं हैं वे सूक्ष्म रूप में हैं। स्वामी कृष्णदेव तीर्थ भारती ने वेदों में से वेद गणित खोज निक|ला उन्होंने वैदिक गणित के सोलह सूत्र बनाए उन्हीं के आधार पर आज वही वैदिक गणित कई देशों में पढ़ाया जा रहा है।
वेदों के ज्ञान के बारे में हमारे ऋषि-मुनियों ने सृष्टि को चार युगों में बांटा है।
सतयुग, त्रेता, द्वापर, और कलियुग।
इनकी आयु इस प्रकार है।
सतयुग - 1728000 (१७२८०००) चारगुना
त्रेता - 1296000 (१२९६०००) तीनगुना
द्वापर - 864000 (८६४०००) दूना कलियुग से
कलियुग - 432000 (४३२०००)
चारों युगों को मिलाकर एक चतुर्युग = 4320000 (४३२००००) बनता है। सृष्टि की आयु चार अरब उन्तीस करोड़ चालीस लाख अस्सी हजार वर्ष है।
71 (७१) चतुर्युग बीत जाने पर 1 मन्वन्तर होता है ऐसे- ऐसे सृष्टि में 14 (१४) मन्वन्तर होते हैं।
1 मन्वन्तर= 4320000 ˣ 71=306720000 (तीस करोड़ सरसठ लाख बीस हजार) वर्ष हुए।
14 मन्वन्तर= 14 ˣ 306720000 = 429480000 (चार अरब उन्तीस करोड़ चालीस लाख अस्सी हजार) वर्ष सृष्टि की आयु है। सृष्टि से अब तक 6 मन्वन्तर=6 ˣ 306720000=1840320000 वर्ष बीत चुके हैं। 7 वाँ मन्वन्तर चल रहा है इसमें 28 वाँ कलियुग चल रहा है अर्थार्थ 27 बार सतयुग, त्रेता, द्वापर, और कलियुग बीत चुके हैं। = 432000 ˣ 27 = 11664000 एक करोड़ सोलह लाख चौसठ हजार वर्ष
अब इसमें सतयुग, त्रेता, द्वापर,27 बार जुड़े हैं जबकि ये 28 बार बीत चुकेहैं इनकी आयु 3888000 (अड़तीस लाख अठासी हजार) वर्ष और जोड़ दें और कलियुग 28 वाँ 5116 वर्ष बीत चुके हैं।
1840320000 + 116640000+3888000+5116= 1960853116
1840320000 + 116640000+3888000+5116= 1960853116
कहने का अर्थ यह है कि 27 बार कलियुग इस मन्वन्तर में आ चुका है। अब २८ वीं बार कलियुग आया है।
1 मन्वन्तर में 71 चतुर्युगी होते हैं। कहने का अर्थ यह है कि चारों युग सतयुग, त्रेता, द्वापर, और कलियुग 71 बार आते रहते हैं। जैसे - रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार महीने में 4-5 बार आ जाते हैं। इसी प्रकार ये चारों युग भी बार-बार आते रहते हैं। सृष्टि का स्वभाव प्रत्येक मन्वन्तर में बदल जाता है इसलिए इसका नाम मन्वन्तर रखा है देखो हमारे ऋषि-मुनियों की गणना कितनी पुरानी और जटिल है।
प्यारे भाइयो और बहिनों 1960853116 वर्ष सृष्टि कि आयु में बीत चुके हैं इतने ही वर्ष पूर्व परमात्मा ने वेद का ज्ञान दिया था। चैत्र अमावस्या के बाद प्रतिपदा पड़वा( 6 अप्रैल
2019) को नया सृष्टि संवत
1960853120 (एक अरब छियानबे करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ बीस) वर्ष व विक्रमीसंवत् 2076वाँ शुरू हो गया है। वेदों में गणित विद्या, तार विद्या, भूगोल विज्ञान, विमान आदि विद्या, सृष्टि विद्या, वैधक विद्या (आयुर्वेद) संगीत विद्यायें हैं। ऋषि-मुनियों ने इन विद्याओं विस्तार करके हमारा मार्ग दर्शन किया हम सभी का कर्तव्य है कि वेदों का पुनः पठन-पाठन हो जिससे भारत विश्व का पुनः गुरु बन सके। विदेशों में भारतीय ग्रंथों पर अनुसंधान चल रहा है। अतः हमें भी इस पर गंभीर चिंतन करना होगा।
-U.C. Verma Arya
-U.C. Verma Arya
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